108 Shakti Peeth List
108 Shakti Peeth in Hindi

 

देवी भागवत पुराण में 108, कालिकापुराण में 26, शिवचरित्र में 51, दुर्गा शप्तसती और तंत्रचूड़ामणि में शक्ति पीठों की संख्या 52 बताई गई है। यह सभी शक्तिपीठ बहुत पावन तीर्थ माने जाते हैं।

 

शक्ति पीठ क्या है?
मां के सती होने और शक्तिपीठ बनने की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार ब्रम्हा को ब्रह्मांड का निर्माण करना था। उन्होंने देवी आदि शक्ति और भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए यज्ञ किया था। देवी आदि शक्ति प्रकट हुई, उन्होंने शिव से अलग होकर ब्रह्मा को ब्रह्मांड के निर्माण में मदद की। ब्रह्मा जी देवी आदि शक्ति को फिर से शिव मिलाने का फैसला करते हैं। इसलिए उनके पुत्र दक्ष ने माता सती को अपनी बेटी के रूप में प्राप्त करने के लिए कई यज्ञ किये। दक्ष का यह यज्ञ सफल रहा और माता सती ने उनके यहाँ जन्म लिया।

भगवान शिव के अभिशाप के कारण भगवान ब्रह्मा ने अपने पांचवें सिर को शिव के सामने अपने झूठ के कारण खो दिया था। दक्ष को इसी वजह से भगवान शिव से द्वेष था और भगवान शिव और माता माता सती की शादी नहीं कराने का निर्णय लिया था। माता सती ने कठोर तपस्या की और अंत में एक दिन शिव और माता सती का विवाह हुआ।

कुछ समय बाद भगवान शिव से प्रतिशोध लेने की इच्छा के साथ दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया। इस यज्ञ में दक्ष ने भगवान शिव और अपनी पुत्री माता सती को छोड़कर सभी देवताओं को आमंत्रित किया। माता सती ने यज्ञ में उपस्थित होने की अपनी इच्छा शिव के सामने व्यक्त की, जिन्होंने उसे रोकने के लिए अपनी पूरी कोशिश की परंतु माता सती यज्ञ में चली गई। यज्ञ के पहुंचने के पश्चात माता सती का स्वागत नहीं किया गया। इसके अलावा, दक्ष ने शिव का अपमान किया। माता सती ने अपने पिता द्वारा अपमान भरे शब्दों को सुन न सकी और उन्होंने अपने शरीर का बलिदान दे दिया।

यज्ञ में हुए अपमान और माता सती के बलिदान से क्रोधित होकर भगवान शिव ने वीरभद्र अवतार में दक्ष के यज्ञ को नष्ट कर दिया और उसका सिर काट दिया। सभी मौजूद देवताओं से अनुरोध के बाद दक्ष को वापस जीवित किया गया और कटे सिर के बदले एक बकरी का सिर लगाया गया। दुख में डूबे शिव ने माता सती के शरीर को उठाकर  विनाश का दिव्य तांडव नृत्य किया। अन्य देवताओं ने विष्णु को इस विनाश को रोकने के लिए हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया, जिस पर विष्णु ने सुदर्शन चक्र का इस्तेमाल करते हुए माता सती के देह के 108 टुकड़े कर दिए। शरीर के विभिन्न हिस्सों भारतीय उपमहाद्वीप के कई स्थानों पर गिरे और वह शक्ति पीठों के रूप में स्थापित हुए।

 

108 शक्ति पीठ के नाम

1. वाराणसी – विशालाक्षी
2. नैमिषारण्य – लिङ्गधारिणी
3. प्रयाग – ललिता
4. गन्धमादन – कामुकी
5. दक्षिणमानस – कुमुदा
6. उत्तरमानस – विश्वकामा
7. गोमन्त – गोमती
8. मन्दर – कामचारिणी
9. चैत्ररथ – मदोत्कटा
10. हस्तिनापुर – जयन्ती
11. कान्यकुब्ज – गौरी
12. मलय – रम्भा
13. एकाग्र – कीर्तिमती
14. विश्व – विश्वेश्वरी
15. पुष्कर – पुरुहूता
16. केदार – सन्मार्गदायिनी
17. हिमवतपृष्ठ – मन्दा
18. गोकर्ण – भद्रकर्णिका
19. स्थानेश्वर – भवानी
20. बिल्वक – बिल्वपत्रिका
21. श्रीशैल – माधवी
22. भद्रेश्वर – भद्रा
23. वराहशैल – जया
24. कमलालय – कमला
25. रुद्रकोटि – रुद्राणी
26. कालञ्जर – काली
27. शालग्राम – महादेवी
28. शिवलिङ्ग – जलप्रिया
29. महालिङ्ग – कपिला
30. माकोट – मुकुटेश्वरी
31. मायापुरी – कुमारी
32. सन्तान – ललिताम्बिका
33. गया – मङ्गला
34. पुरुषोत्तम – विमला
35. सहस्त्राक्ष – उत्पलाक्षी
36. हिरण्याक्ष – महोत्पला
37. विपाशा – अमोघाक्षी
38. पुण्ड्रवर्धन – पाटला
39. सुपार्श्व – नारायणी
40. त्रिकटु – रुद्रसुन्दारी
41. विपुल – विपुला
42. मलयाचल – कल्याणी
43. सह्याद्रि – एकवीरा
44. हरिश्चन्द्र – चन्द्रिका
45. रामतीर्थ – रमणी
46. यमुना – मृगावती
47. कोटितीर्थ – कोटवी
48. मधुवन – सुगन्धा
49. गोदावरी – त्रिसन्ध्या
50. गङ्गाद्वार – रतिप्रिया
51. शिवकुण्ड – शुभानन्दा
52. देविकातट – नन्दिनी
53. द्वारावती – रुक्मणी
54. वृन्दावन – राधा
55. मथुरा – देवकी
56. पाताल – परमेश्वरी
57. चित्रकूट – सीता
58. विन्ध्य – विन्ध्यवासिनी
59. करवीर – महालक्ष्मी
60. विनायक – उमादेवी
61. वैद्यनाथ – आरोग्या
62. महाकाल – महेश्वरी
63. उष्णतीर्थ – अभया
64. विन्ध्यपर्वत – नितम्बा
65. माण्डव्य – माण्डवी
66. माहेश्वरीपुर – स्वाहा
67. छगलण्ड – प्रचण्डा
68. अमरकण्टक – चण्डिका
69. सोमेश्वर – वरारोहा
70. प्रभास – पुष्करावती
71. सरस्वती – देवमाता
72. तट – पारावारा
73. महालय – महाभागा
74. पयोष्णी – पिङ्गलेश्वरी
75. कृतशौच – सिंहिका
76. कार्तिक – अतिशाङ्करी
77. उत्पलावर्तक – लीला (लोहा)
78. शौणसङ्गंम – सुभद्रा
79. सिद्धवन – लक्ष्मी
80. भरताश्रम – अनङ्गा
81. जालन्धर – विश्वमुखी
82. किष्किंधापर्वत – तारा
83. देवदारुवन – पुष्टि
84. काश्मीरमण्डल – मेधा
85. हिमाद्रि – भीमादेवी
86. विश्वेश्वर – तुष्टि
87. शंखोद्वार – धरा
88. पिण्डारक – धृति
89. चन्द्रभागा – कला
90. अच्छोद – शिवधारिणी
91. वेणा – अमृता
92. बदरी – उर्वशी
93. उत्तरकुरु – ओषधि
94. कुशद्वीप – कुशोदका
95. हेमकूट – मन्मथा
96. कुमुद – सत्यवादिनी
97. अश्वत्थ – वन्दनीया
98. कुबेरालय – निधि
99. वेदवदन – गायत्री
100. शिवसन्निधि – पार्वती
101. देवलोक – इन्द्राणी
102. ब्रह्मामुख – सरस्वती
103. सूर्यविम्ब – प्रभा
104. मातृमध्य – वैष्णवी
105. सतीमध्य – अरुन्धती
106. स्त्रीमध्य – तिलोत्तमा
107. चित्रमध्य – ब्रह्मकला
108. सर्वप्राणीवर्ग – शक्ति

 

कहां-कहां होगें देवी माता के पवित्र 51 शक्तिपीठ के दर्शन – 51 Shakti Peeth

 

108 शक्ति पीठ के नाम और कहाँ सती माता का कौन सा अंग या आभूषण गिरा है।

देवी माता के पवित्र 108 शक्तिपीठ के दर्शन करने के लिए हमें कौन से स्थलों पर जाना होगा, जानते है इसके बारे में।

 

1. विशालाक्षी शक्तिपीठ, वाराणसी

काशी विश्‍वनाथ मंदिर से कुछ ही दूरी पर काशी विशालाक्षी मंदिर है। यह पवित्र 108शक्तिपीठो में से एक है। कहा जाता है कि यहां शिव की पत्‍नी सती का कर्ण कुण्डल की मणि गिरा था। जिसके कारण इसका एक नाम मणिकर्णी शक्ति पीठ भी कहा जाता है। तब से इस स्थान की महिमा और महात्म्य दोनों काफी बढ़ गए। मां विशालाक्षी का मंदिर मीर घाट पर स्थित है। इस मंदिर में मां विशालाक्षी की दो मूर्तियां हैं।

 

2. लिङ्गधारिणी शक्तिपीठ, नैमिषारण्य 

नैमिषारण्य वर्तमान में उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले में स्थित है और एक मशहूर तीर्थ स्थल है। इस तीर्थ स्थल पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु और पर्यटक पहुंचते हैं.इसे नैमिषारण्य के अलावा नैमिष या नीमसार के नाम से भी जाना जाता है. ऋषियों ने मनोमय चक्र का अनुसरण किया, जो लंबे समय तक यात्रा करने के बाद ब्रह्मा की भविष्यवाणी के अनुसार भूमि के एक बड़े हिस्से पर गिर गया उसके नष्ट होते ही उस स्थान से पानी की एक विशाल धारा निकलकर शिवलिंग के रूप में प्रकट हुई। जैसे ही उस स्थान पर पानी भर गया, ऋषियों ने प्रार्थना की और माँ शक्ति प्रकट हुईं और जल के प्रवाह को रोक दिया। इसलिए नैमिषारण्य एक शक्तिपीठ भी है और यहां एक प्रसिद्ध प्राचीन ललिता देवी मंदिर भी है। इन्हें लिंगधारिणी शक्ति भी कहा जाता है।

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3. ललिता शक्तिपीठ, प्रयाग  

यह शक्तिपीठ प्रयागराज जंक्शन से 3.1 किलोमीटर दक्षिण में स्थित है। यह मंदिर प्रसिद्ध शक्तिपीठों में से एक है और नैमिषारण्य की अधिष्ठात्री देवी ललिता देवी को समर्पित है, जो इसे उत्तर प्रदेश में एक अत्यधिक सम्मानित हिंदू मंदिर बनाता है। यहाँ सती के दाहिने हाथ की अंगुलियाँ गिरी थीं। इस मंदिर में एक वर्गाकार पीठ के अलावा कोई मूर्ति नहीं है। यह एक अत्यधिक पूजनीय हिंदू मंदिर है।

 

4. कामुकी शक्तिपीठ, गन्धमादन 

प्राचीन पाठ के अनुसार भी गंधमादन पर्वत पर, जो अब उत्तरांचल के कुमाउं में है, देवदार के उंचे वृक्ष की छाया में एक छोटा सा मंदिर था। यहां माता सती की आंखें गिरी थी। वहीं नैना देवी की झील भी बन गई। इस मंदिर के अंदर नैना देवी के साथ-साथ गणेश जी और मां काली की भी मूर्तियां मौजूद हैं। नैनीताल प्रमुख शक्तिपीठों में से एक है, जिसे हिंदू धर्म के धार्मिक स्थलों के रूप में भी जाना जाता है।

 

5. कुमुदा शक्तिपीठ, दक्षिणमानस  

 

6. विश्वकामा शक्तिपीठ, उत्तरमानस 

 

7. गोमती शक्तिपीठ,गोमन्त  

108 शक्तिपीठो में से एक गोमन्त सिद्ध शक्तिपीठ है। गोमन्त सिद्ध शक्तिपीठ में गोमती नाम की देवी विराजित है इस शक्तिपीठ को अज्ञात है। लेकिन ऐसा माना जाता है यह शक्तिपीठ गोमन्त पर्वत पर स्थित है।

 

8. कामचारिणी शक्तिपीठ, मन्दर  

108 शक्तिपीठो में देवी कामचारिणी है। ये शक्तिपीठ मंदराचल पर्वत पर बताया जाता है। मंदराचल वही पर्वत जिसका उपयोग समुन्द्र मंथन के दौरान मथने के लिए हुआ था। शिवपुराण के अनुसार दक्षप्रजापति ने इसी स्थान पर भगवती आदि की तपस्या कर पुत्री रूप में प्राप्त किया था। मंदराचल में निवास करने वाली कामचारिणी देवी का वर्णन मिलता है। बिहार के बांका जिले में मंदार पर्वत स्थित है।

 

9. मदोत्कटा शक्तिपीठ, चैत्ररथ  

बक्सर एक सिद्धपीठ है, यहां की अधिष्ठात्री देवी मदोत्कटा हैं। इसकी चर्चा पवित्र देवी भागवत महापुराण (देवी महापुराण) व वाराहपुराण में है। देवी महापुराण में नाैवें स्थान पर देवी मदोत्कटा का चैत्ररथ वन में है। बक्सर के रानी घाट पर स्थित जिन देवी का जिक्र देवी पुराण में है। वे बक्सर महर्षि विश्वामित्र कॉलेज परिसर में हैं।

 

10. जयन्ती शक्तिपीठ, हस्तिनापुर  

108 शक्तिपीठो में से एक शक्तिपीठ हस्तिनापुर (मेरठ) में जयंती माता शक्तिपीठ है। जहाँ पर माता सती के 108 अंगो में से दाहिनी जंघा का अंग दक्षिण गुल्फ एक अंग गिरा था। जिसका नाम जयंती माता शक्तिपीठ पड़ा। जयंती माता का नाम हिंदू धर्म में बड़ी श्रद्धा के साथ लिया जाता है। यह शक्तिपीठ मंदिर भी स्वयं में अद्भुत है। मंदिर में पांडवों की कुलदेवी मां जयंती पिंडी रूप में विराजमान हैं। प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण मंदिर का वातावरण भी श्रद्धालुओं को खूब भाता है। यहाँ हर मनोकामना पूरी होती है।

 

11. गौरी शक्तिपीठ, कान्यकुब्ज  

कन्नौज शहर के पूर्वी छोर में गौरी शक्तिपीठ स्थित है। जहां-जहां माता सती के शव के अंग गिरे थे, वहां-वहां शक्तिपीठों की स्थापना हुई थी । उसी क्रम में कान्यकुब्ज (कन्नौज) क्षेत्र में मां गौरी के अंग गिरने से यह स्थान भी 108 शक्तिपीठ में शुमार किया जाता है ।

 

12. रम्भा शक्तिपीठ, मलय  

 

13. कीर्तिमती शक्तिपीठ, एकाग्र  

किरीटेश्वरी मंदिर पश्चिम बंगाल राज्य के मुर्शिदाबाद जिले के नबाग्राम के अंतर्गत किरीटकोना गांव में स्थित है। यह 108 शक्तिपीठों में से एक सती पीठ है। किरीटेश्वरी मंदिर शक्ति पीठ वर्ष से अधिक पुराना है, और इस स्थान को “महामाया” का शयन स्थान भी माना जाता है।

 

14. विश्वेश्वरी शक्तिपीठ, विश्व  

विश्वेश्वरी शक्तिपीठ गोदावरी नदी के तट पर कोटीलान्गेश्वर मंदिर में स्थित है। विश्वेश्वरी एक प्रसिद्ध शक्तिपीठ है जहाँ माँ सती के गाल गिरे थे माँ सती को यहाँ रागनी के रूप में पूजा जाता है।

 

15.  पुरुहूता शक्तिपीठ, पुष्कर  

पुष्कर में नाग पहाड़ी और सावित्री माता की पहाड़ी के बीच स्थित है पुरुहूता पर्वत पर पुरुहूता शक्तिपीठ है। यह शक्तिपीठ 108 सिद्ध पीठों का 15वां भाग है। देवी ग्रंथ में स्पष्ट किया गया है कि परूहुता पहाड़ी पर माता जी के दोनों हाथों की कलाइयां गिरी थी। मंदिर अति प्राचीन है।  यहाँ दूर-दराज से कई देवी साधक गुप्त रूप से मंदिर में अनुष्ठान करने आते है। ऐसी मान्यता है कि शक्तिपीठ के दर्शन मात्र से श्रद्धालुओं की मनोकामना पूरी होती है। हिंदू धर्म के मानने वाले लोगों के लिए आस्था का बड़ा केंद्र है।

 

16. सन्मार्गदायिनी शक्तिपीठ, केदार  

 

17.  मन्दा शक्तिपीठ, हिमवतपृष्ठ  

 

18. भद्रकर्णिका शक्तिपीठ, गोकर्ण 

पुराणों में 108 शक्तिपीठों में है 18 वां स्थान भद्रकर्णिका का है। मां मंगला ही है देवी भद्रकर्णिका। छोटी काशी में आदि शक्ति का देवालय मां मंगला देवी के नाम से विख्यात है। गोकर्ण तीर्थ में भद्रकर्णिका नाम से अपने को स्थापित बताया। जब भक्तों की यहां कामना पूर्ण होने लगी तो उनका नाम मां मंगला रख दिया गया। अब यह मां मंगला के नाम से विख्यात हैं। मां मंगला हर लेती हैं अपने श्रद्धालुओं के संकट को।

 

19. भवानी शक्तिपीठ, स्थानेश्वर  

देवी का यह पीठ बांग्लादेश में चटगांव से 38 किलोमीटर दूर सीताकुंड स्टेशन के पास चंद्रशेखर पर्वत पर स्थित है। समुद्रतल से 350 मीटर की ऊंचाई पर यहां चंद्रशेखर शिव का भी मंदिर है। मान्यता है कि यहां सती की ‘दाहिनी भुजा’ का निपात हुआ था। यहां की शक्ति भवानी तथा शिव चंद्रशेखर हैं।

 

20. बिल्वपत्रिका शक्तिपीठ, बिल्वक  

 

21. माधवी शक्तिपीठ, श्रीशैल  

आंध्र प्रदेश में स्थित ‘श्री शैल शक्तिपीठ’ भारतवर्ष के अज्ञात 108 एवं ज्ञात 51 पीठों में से एक है। दूर कुर्नूल के पास श्री शैलम है, जहाँ सती की ‘ग्रीवा’ का पतन हुआ था। यहाँ की सती ‘महालक्ष्मी’ तथा शिव ‘संवरानंद’ अथवा ‘ईश्वरानंद’ हैं। श्री शैल को “दक्षिण का कैलास” और साथ ही ‘ब्रह्मगिरि’ भी कहते हैं। इसी स्थान पर भगवान शिव का मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग है।

 

22. भद्रा शक्तिपीठ, भद्रेश्वर  

यह ऐतिहासिक मंदिर हरियाणा की एकमात्र सिद्ध शक्तिपीठ है, जहां मां भद्रकाली शक्ति रूप में विराजमान हैं। मां भद्रकाली की सुंदर प्रतिमा शांत मुद्रा में यहां विराजमान है। हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन मां भद्रकाली की पूजा अर्चना व दर्शन करते हैं। इस मंदिर में विशेष उत्सव के रूप में चैत्र व आश्विन के नवरात्र बड़ी धूमधाम से मनाए जाते हैं।

 

23. जया शक्तिपीठ, वराहशैल   

 

24. कमला शक्तिपीठ,कमलालय  

 

25. रुद्राणी शक्तिपीठ, रुद्रकोटि  

108 शक्ति पीठों में से 24वीं शक्ति पीठ रुद्रकोटि की मानी जाती है। देवी भागवत का कहना है कि वह रुद्राणी पीतम को सुशोभित करती हैं। ऐसा माना जाता है कि नौ पूर्णिमा के दिन मंदिर में उनकी प्रार्थना करने से भक्त को विवाह बंधन में बंधने, सुखी पारिवारिक जीवन जीने और सभी कष्टों से मुक्ति पाने में मदद मिलती है।

 

26. काली शक्तिपीठ, कालञ्जर  

कोलकाता के कालीघाट मंदिर में माता सती के दाहिने पैर का अँगूठा गिरा था। तब से ही यह स्थान शक्तिपीठ माना जाता है। इस मंदिर की सबसे खास बात यह है कि पहले यह मंदिर हुगली (जिसे भागीरथी भी कहा जाता था) के किनारे स्थित था। लेकिन समय के साथ भागीरथी, मंदिर से दूर होती चली गई। अब यह मंदिर आदिगंगा नाम की नहर के किनारे पर स्थित है, जो अंततः हुगली नदी से जाकर मिलती है।

 

27. महादेवी शक्तिपीठ, शालग्राम  

हिंदुओं के सबसे पवित्र स्थलों में से एक माना जाने वाला मिथिला शक्ति पीठ वह स्थान है जहां माता सती का बायां कंधा गिरा था। यहाँ, उमा और महादेवी को शक्ति के रूप में पूजा जाता है, जबकि भैरव को महोदर के रूप में पूजा जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जहां सती के शरीर के अंग (कपड़े या गहने) गिरे, वहां एक पवित्र मंदिर बन गया जिसे अब शक्तिपीठ के रूप में जाना जाता है।

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28. जलप्रिया शक्तिपीठ, शिवलिङ्ग  

 

29. कपिला शक्तिपीठ, महालिङ्ग  

 

30. मुकुटेश्वरी शक्तिपीठ, माकोट  

मुक्तेश्वरी महादेवी शक्तिपीठ इस पावन स्थान पर माता का मुकुट गिरा। यहां पूजा की मूर्तियां हैं – देवी के रूप में विमला और भगवान शिव के रूप में संगबर्ता। माँ किरीटेश्वरी का मंदिर शहर का मुख्य मंदिर है। यह मंदिर मुर्शिदाबाद जिले का सबसे पुराना मंदिर है। ये मंदिर बड़नगर के निकट गंगा तट पर हैं।

 

31. कुमारी शक्तिपीठ, मायापुरी  

कुमारी शक्तिपीठ अज्ञात 108 एवं ज्ञात 51 शक्तिपीठों में से एक है। इसका हिन्दू धर्म में बड़ा ही महत्त्व है। तीन सागरों के संगम-स्थल पर स्थित कन्याकुमारी के मंदिर में ही भद्रकाली का मंदिर है। यह कुमारी देवी की सखी हैं। यह मंदिर ही शक्तिपीठ है, जहाँ देवी के देह का पृष्ठभाग का पतन हुआ था। यहाँ की शाक्ति शर्वाणि या नारायणी हैं। ऐसा कहा जाता है कि यहाँ स्नानार्थी समस्त पापों से मुक्त हो जाता है।

 

32. ललिताम्बिका शक्तिपीठ, सन्तान  

तिरुवरूर जिले में स्थित यह मंदिर वह स्थान माना जाता है जहां ललिता सहस्रनाम की रचना की गई थी। देवी ललिताम्बिका को संपूर्ण ब्रह्मांड की सर्वोच्च माता के रूप में जाना जाता है।

 

33. मङ्गला शक्तिपीठ, गया  

बिहार के गया जिले में सिद्धपीठ के रूप में स्थित मां मंगलागौरी का मंदिर है जहां देवी सती के स्तन का टुकड़ा गिरा था। इस मंदिर को महाशक्तिपीठों में गिना जाता है। पहाड़ी पे विराजमान माता को परोपकार की देवी माना जाता है। मंगला गौरी मंदिर में नवरात्र के महीने में लाखों की संख्या में श्रद्धालु माता के दर्शन करने हेतु आते है जो यहाँ के दृश्य को मनोरम बनाती है।

 

34. विमला शक्तिपीठ, पुरुषोत्तम 

विमला मंदिर को ओडिशा के चार शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। जहां सती के पैर गिरे थे। यह पुरी के प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर के अंदर स्थित है। मंदिर की प्रमुख देवता देवी विमला हैं, जिन्हें देवी पार्वती या देवी दुर्गा के रूप में भी पूजा जाता है। इस मंदिर को पुरी शक्ति पीठ, श्री विमला शक्ति पीठ और श्री बिमला मंदिर जैसे अन्य नामों से भी जाना जाता है।

 

35. उत्पलाक्षी शक्तिपीठ, सहस्त्राक्ष  

सहस्त्राक्ष में वह देवी उत्पलाक्षी के रूप में हैं।

 

36. महोत्पला शक्तिपीठ, हिरण्याक्ष  

 

37. अमोघाक्षी शक्तिपीठ, विपाशा  

 

38. पाटला शक्तिपीठ, पुण्ड्रवर्धन  

 

39. नारायणी शक्तिपीठ, सुपार्श्व  

धार्मिक मान्यता​​ तमिलनाडु में कन्याकुमारी के ‘त्रिसागर’ संगम स्थल से 13 किलोमीटर की दूरी पर शुचींद्रम में स्थित स्थाणु-शिव के मंदिर में ही शुचि शक्तिपीठ स्थापित है। यहाँ सती के ‘ऊर्ध्वदंत’ गिरे थे। यहाँ की नारायणी शक्तिपीठ है।

 

40. रुद्रसुन्दारी शक्तिपीठ, त्रिकटु  

त्रिपुरा में स्थित त्रिपुर सुंदरी का शक्तिपीठ है माना जाता है कि यहां माता के धारण किए हुए वस्त्र गिरे थे। त्रिपुर सुंदरी शक्तिपीठ भारतवर्ष के अज्ञात 108 एवं ज्ञात 51 पीठों में से एक है। इसका हिन्दू धर्म में बड़ा ही महत्त्व है।

 

41. विपुला शक्तिपीठ, विपुल  

 

42. कल्याणी शक्तिपीठ, मलयाचल 

तीर्थराज प्रयाग में जगह-जगह मठ और मंदिर बिखरे पड़े हैं लेकिन कुछ मंदिरों का पौराणिक और ऐतिहासिक दृष्टि से विशेष महत्व है जिनमें पुराने शहर में स्थित कल्याणी देवी का मंदिर भी है जिसको शक्तिपीठ कहा जाता है। यहां मां के दर्शन-पूजन के लिए शहर के अलावा दूर-दराज से भी हजारों श्रद्धालु व देवीभक्त आते हैं। जहां पर मां कल्याणी देवी का मंदिर है, वहां मां सती जी की तीन अंगुलियां गिरी थीं।

 

43. एकवीरा शक्तिपीठ, सह्याद्रि  

एकवीरा देवी शक्ति पीठ है। यहाँ सती का दाहिना हाथ माहुर में गिरा और पवित्र स्थान एकवीरा के रूप में माना जाता है, जो अष्टादश शक्ति पीठों में 8वीं शक्ति पीठ है। एकवीरा देवी मंदिर महाराष्ट्र के नादेड़ के पास माहुर में है। ऐसा माना जाता है कि यह पवित्र स्थान दत्तात्रेय का जन्म स्थान है। यह मंदिर शांत सह्याद्रि पर्वत के बीच स्थित है। यह मंदिर एक पवित्र पूजा स्थल और आध्यात्मिकता का प्रतीक है।

 

44. चन्द्रिका शक्तिपीठ, हरिश्चन्द्र  

मां चंडिका का मंदिर बिहार के मुंगेर जिला मुख्यालय से चार किलोमीटर दूर गंगा के किनारे स्थित है। मान्यता है कि इस स्थल पर माता सती की बाईं आंख गिरी थी। यहां आंखों के असाध्य रोग से पीड़ित लोग पूजा करने आते हैं और यहां से काजल लेकर जाते हैं। लोग मानते हैं कि यह काजल नेत्ररोगियों के विकार को दूर करता है।

 

45. रमणी शक्तिपीठ, रामतीर्थ  

पौराणिक मान्यता है चित्रकूट के पास रामगिरि स्थान पर माता सती का वक्ष गिरा था। यहां पर कुछ लोग माता को शिवानी भी कहते हैं। नवरात्र में इस मंदिर में पैर रखने की भी जगह नहीं होती है।

 

46. मृगावती शक्तिपीठ, यमुना  

 

47. कोटवी शक्तिपीठ, कोटितीर्थ  

 

48. सुगन्धा शक्तिपीठ, मधुवन  

सुंगधा या सुनंदा स्थान पर सती माता की नासिका या नाक गिरी थी। यहां की देवी सुनंदा और शिव त्र्यम्बक के नाम से प्रसिद्ध हैं, इसलिए इस पीठ को सुनंदा पीठ भी कहा जाता है। सुनंदा शक्तिपीठ में स्थापित देवी सती की जो पुरानी मूर्ति थी, वो अब चोरी हो चुकी है. उसके स्थान पर नई मूर्ति स्थापित की गई है. प्राचीन मूर्ति अब तक अज्ञात है. वर्तमान में देवी उग्रतारा की मूर्ति है, जिन्हें सुगंध की देवी के रूप में पूजा जाता है।

 

49. त्रिसन्ध्या शक्तिपीठ, गोदावरी  

प्रसिद्ध ‘गोदावरी तट शक्तिपीठ’ आन्ध्र प्रदेश के ‘कुब्बूर’ में गोदावरी नदी के तट पर स्थित है। माना जाता है कि यहाँ पर सती के “वामगण्ड” (बायाँ गाल) का निपात हुआ था। इस शक्तिपीठ की सती ‘विश्वेश्वरी’ या ‘रुक्मिणी’ तथा शिव ‘दण्डपाणि’ हैं।

 

50. रतिप्रिया शक्तिपीठ, गङ्गाद्वार  

 

51. शुभानन्दा शक्तिपीठ, शिवकुण्ड  

 

52. नन्दिनी शक्तिपीठ, देविकातट  

यह शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल के सैन्थया में स्थित है जहा पर नंदिनी देवी का मंदिर है। इस स्थान पर माता सती के गले का हार यानि कंठ हार गिरा था। इसीलिए इस मंदिर की गणना शक्तिपीठो में की जाती है। भक्त यहां पर आकर नंदिनी देवी के दर्शन कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते है।

 

53. रुक्मणी शक्तिपीठ, द्वारावती  

 

54. राधा शक्तिपीठ, वृन्दावन  

मथुरा के वृंदावन में माता कात्यायनी देवी शक्तिपीठ स्थित है। इस मंदिर को उमा शक्तिपीठ के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर का निर्माण देवी सती के केश गिरने वाली जगह पर हुआ है हर साल इस मंदिर में नवरात्रि के मौके पर भक्तों की काफी भीड़ रहती है।

 

55. देवकी शक्तिपीठ, मथुरा  

 

56. परमेश्वरी शक्तिपीठ, पाताल  

 

57. सीता शक्तिपीठ, चित्रकूट  

चित्रकूट शक्ति पीठ उत्तर प्रदेश के चित्रकूट में स्थित देवी सती (शक्ति) का एक हिंदू मंदिर है। यहाँ पर देवी की मूर्ति को शिवानी के रूप में जाना जाता है और भगवान शिव को चंदा के रूप में जाना जाता है। यहाँ पर माता सती का दाहिना स्तन गिरा था और अन्य मतों के लोगों के अनुसार, देवी का नाला इसी स्थान पर गिरा था। नाला को हड्डी के रूप में जाना जाता है जो किसी व्यक्ति के पेट में होती है।

 

58. विन्ध्यवासिनी शक्तिपीठ, विन्ध्य  

ऐसा माना जाता है कि विंध्याचल में देवी सती का बायां अंगूठा यहां गिरा था और तब से यह स्थान सबसे अधिक देखे जाने वाले शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। लोककथाओं में यह भी बताया गया है कि देवी दुर्गा ने राक्षस महिषासुर का वध करने के बाद खुद को विंध्याचल में स्थापित किया था। विंध्याचल को आदिशक्ति भी माना जाता है।

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59. महालक्ष्मी शक्तिपीठ, करवीर  

करवीर शक्तिपीठ महालक्ष्मी मंदिर कोल्हापुर का श्री महालक्ष्मी मंदिर माता के 108 शक्ति पीठों में से एक है। कोल्हापुर प्राचीन करवीर क्षेत्र में स्थित एक महत्वपूर्ण शहर है, यही कारण है कि देवी महालक्ष्मी को करवीर निवासिनी भी कहा जाता है। यहाँ माता का त्रिनेत्र गिरा था।

 

60. उमादेवी शक्तिपीठ, विनायक  

बिहार के दरभंगा जिले के पास मां उमा देवी का मंदिर है जो माता सती के 51 शक्तिपीठों में से एक है। यह मंदिर मां दुर्गा को समर्पित है। कहा जाता है की माता सती का बाया कंधा गिरा था। कंधे के गिरने के स्थान पर इस मंदिर का निर्माण किया गया। यहाँ माता सती के मूर्ती को महादेवी या उमा कहा जाता है। माता सती का यह मंदिर पहाड़ पर स्थित है।

 

61. आरोग्या शक्तिपीठ, वैद्यनाथ  

बैद्यनाथ धाम ज्योतिर्लिंग होने के साथ ही एक शक्तिपीठ भी है। यह 51 शक्तिपीठों में से एक है। यहाँ माता सती का हृदय गिरा था। मंदिर में आने वाले सभी भक्तों की इच्छा पूर्ण होती है। इस मंदिर के शिखर पर स्थित पंचशुल का भी अलग महत्व है।

 

62. महेश्वरी शक्तिपीठ,महाकाल  

महाकाल मंदिर के सभा मंडप में माता अवंतिका का मंदिर है। इस मंदिर में विराजित माता अवंतिका माता की मूर्ति हरसिद्धि मंदिर में विराजित माता हरसिद्धि के आमने समाने हैं। मान्यता है हरसिद्धि में माता सती की कोहनी तथा अवंतिकापीठ में माता ऊध् र्व ओष्ठ गिरा था।

 

63. अभया शक्तिपीठ, उष्णतीर्थ  

 

64. नितम्बा शक्तिपीठ, विन्ध्यपर्वत  

 

65. माण्डवी शक्तिपीठ, माण्डव्य  

108 सिद्धपीठों में एक मां मांडवी देवी धाम को पर्यटक स्थल है। मांडवी देवी धाम में माता सती के दोनों स्तन गिरे थे। जिनकी पूजा अर्चना आज भी की जाता है।

 

66. स्वाहा शक्तिपीठ, माहेश्वरीपुर 

माहेश्वरीपुर में माता सती ‘स्वाहा’ नाम से प्रतिष्ठित हैं। मां भगवती की 108 सिद्धपीठ में मध्यप्रदेश की विंध्यवासिनी स्वाहा महेश्वरी देवी का मंदिर भी शामिल है माता का यह मंदिर एमपी के खरगोन जिले की पवित्र एवं पर्यटन नगरी महेश्वर के भवानी चौक में मौजूद है। माता का स्वाह अंग यहां गिरने से यह स्वाहा शक्तिपीठ के रूप में स्थापित हुई है।

 

67. प्रचण्डा शक्तिपीठ, छगलण्ड  

 

68. चण्डिका शक्तिपीठ, अमरकण्टक  

अमरकंटक मध्य प्रदेश के अनुपपुर जिले में मेकल पर्वत पर स्थित है। यहाँ माता सती का दक्षिण नितम्ब गिरा था जिस कारण यहाँ पर भी शक्तिपीठ बनाया गया है। इस मन्दिर को चण्डिका पीठ कहा जाता है।

 

69. वरारोहा शक्तिपीठ, सोमेश्वर  

 

70. पुष्करावती शक्तिपीठ, प्रभास  

 

71. देवमाता शक्तिपीठ, सरस्वती  

ऐसा माना जाता है कि सती का दाहिना हाथ मुजफ्फराबाद से 150 किलोमीटर की दूरी पर पाक अधिकृत कश्मीर में गिरा था और सारदा या सरस्वती देवी के नाम से शक्ति पीठ के रूप में प्रसिद्ध है। सारदा पीठ कश्मीर पंडितों के लिए तीसरा महत्वपूर्ण पवित्र स्थान है।

 

72. पारावारा शक्तिपीठ, तट  

 

73. महाभागा शक्तिपीठ, महालय  

 

74. पिङ्गलेश्वरी शक्तिपीठ, पयोष्णी  

 

75. सिंहिका शक्तिपीठ, कृतशौच  

 

76. अतिशाङ्करी शक्तिपीठ, कार्तिक  

 

77. लीला (लोहा) शक्तिपीठ, उत्पलावर्तक  

 

78. सुभद्रा शक्तिपीठ, शौणसङ्गंम  

देवी सती के शरीर के एक अंग भारत के पड़ोसी देश बांग्लादेश में जा गिरा। जहां सुंगधा नदी के तट के पास स्थित उग्रतारा देवी का मंदिर ही शक्तिपीठ माना जाता है। कहते हैं सुंगधा या सुनंदा स्थान पर सती माता की नासिका या नाक गिरी थी। यहां की देवी सुनंदा और शिव त्र्यम्बक के नाम से प्रसिद्ध हैं, इसलिए इस पीठ को सुनंदा पीठ भी कहा जाता है।

 

79. लक्ष्मी शक्तिपीठ, सिद्धवन  

 

80. अनङ्गा शक्तिपीठ, भरताश्रम 

 

81.  विश्वमुखी शक्तिपीठ,जालन्धर  

वैसे यहाँ विश्वमुखी देवी का मंदिर है, जहाँ पीठ स्थान पर स्तन मूर्ति कपड़े से ढंकी रहती है और धातु निर्मित मुखमण्डल बाहर दिखता है। इसे ‘स्तनपीठ’ एवं ‘त्रिगर्त तीर्थ’ भी कहते हैं और यही ‘जालंधर पीठ’ नामक शक्तिपीठ माना जाता है। यहाँ सती के वाम स्तन का निपात हुआ था।

 

82. तारा शक्तिपीठ, किष्किंधापर्वत  

पौराणिक कथाओं के अनुसार सती मां का नयन इस स्थान पर गिरा था और ये एक शक्ति पीठ बन गई। तारापीठ शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में स्थित है। इस मंदिर की अपनी अलग ही खासियत है। इस मंदिर की महिमा के कारण दूर-दूर से लोगों का यहां साल भर तांता लगा रहता है।

 

83. पुष्टि शक्तिपीठ, देवदारुवन  

पुष्टि देवी मंदिर अल्मोडा जिले के जागेश्वर में स्थित एक लोकप्रिय मंदिर है। यह मंदिर जागेश्वर धाम मंदिर परिसर में स्थित है। इस शक्तिपीठ में माता सती के दोनों कान गिरे थे।

 

84. मेधा शक्तिपीठ, काश्मीरमण्डल  

 

85. भीमादेवी शक्तिपीठ, हिमाद्रि  

भीमा देवी मंदिर एक हिन्दू मंदिर है। यह मंदिर भारत के हरियाणा राज्य के पंचकुला जिले के पिंजोर शहर में स्थित है। यह मंदिर 8वीं और 11वीं शताब्दी के बीच का बनाया गया एक प्राचीन हिन्दू मंदिर है।

 

86. तुष्टि शक्तिपीठ, विश्वेश्वर  

 

87. धरा शक्तिपीठ, शंखोद्वार  

 

88. धृति शक्तिपीठ, पिण्डारक  

 

89. कला शक्तिपीठ, चन्द्रभागा  

चंद्रभागा या प्रभास शक्ति पीठ हिंदुओं के बीच सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। यह गुजरात के प्रभास क्षेत्र में त्रिवेणी संगम के निकट है। प्रभास शक्ति पीठ में माता सती का “पेट” गिरा था। यहां माता सती को ‘चंद्रभागा’ और भगवान शिव को ‘वक्रतुंड’ के नाम से जाना जाता है।

 

90. शिवधारिणी शक्तिपीठ, अच्छोद  

 

91. अमृता शक्तिपीठ, वेणा  

 

92. उर्वशी शक्तिपीठ, बदरी  

उत्तराखंड के चमोली जिले के बद्रीनाथ के नजदीक बामणी गांव है जहां से कुछ दूरी की चढ़ाई पर सुंदरता की देवी उर्वशी का मंदिर है। इस मंदिर की संरचना बेहद साधारण है। मंदिर में उर्वशी की मूर्ति बनी हुई है उर्वशी पीठ के अनुसार भगवती सती का एक अंश यहां भी गिरा है।

 

93. ओषधि शक्तिपीठ, उत्तरकुरु  

 

94. कुशोदका शक्तिपीठ, कुशद्वीप  

कुशद्वीप में वह देवी कुशोदका के रूप में हैं।

 

95. मन्मथा शक्तिपीठ, हेमकूट 

 

96. सत्यवादिनी शक्तिपीठ, कुमुद  

कुमुद वन में वह देवी सत्यवादिनी के रूप में हैं।

 

97. वन्दनीया शक्तिपीठ, अश्वत्थ  

 

98. निधि शक्तिपीठ, कुबेरालय   

 

99. गायत्री शक्तिपीठ, वेदवदन  

अजमेर के निकट विश्‍व प्रसिद्ध पुष्कर नामक स्थान से लगभग 5 किलोमीटर दूर गायत्री पर्वत पर दो मणिबंध (हाथ की कलाई) गिरे थे इसीलिए इसे मणिबंध स्थान कहते हैं।

 

100. पार्वती शक्तिपीठ,शिवसन्निधि  

 

101. इन्द्राणी शक्तिपीठ, देवलोक  

श्रीलंका में इन्द्राणी शक्तिपीठ है। जाफना के नल्लूर में स्थित इस मंदिर के बारे में माना जाता है कि यहां देवी सती की पायल गिरी थी। यहां की शक्ति को इन्द्राक्षी कहा जाता है, यही वजह है कि इस शक्तिपीठ को इन्द्राक्षी शक्तिपीठ भी कहते हैं।

 

102. सरस्वती शक्तिपीठ, ब्रह्मामुख  

कश्मीर सरस्वती मंदिर को शक्तिपीठ माना जाता है। इस स्थान पर सती देवी का दाहिना हाथ गिरा था। अभी वहां केवल मंदिर के खंडहर ही बचे हैं। सरस्वती मंदिर को शारदा पीठ के नाम से जाना जाता है।

 

103. प्रभा शक्तिपीठ, सूर्यविम्ब  

 

104. वैष्णवी शक्तिपीठ, मातृमध्य  

 

105. अरुन्धती शक्तिपीठ, सतीमध्य  

 

106. तिलोत्तमा शक्तिपीठ, स्त्रीमध्य  

 

107. ब्रह्मकला शक्तिपीठ,चित्रमध्य 

 

108. शक्ति शक्तिपीठ,सर्वप्राणीवर्ग  

 

कहां-कहां होगें देवी माता के पवित्र 51 शक्तिपीठ के दर्शन – 51 Shakti Peeth

 


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